New Delhi: इस भागमभाग वाली दुनिया में किसी के पास इतना समय भी नहीं कि दो मिनट रुककर अपने साथियों से हाल-चाल पूछ ले। लेकिन एक महिला ऐसी हैं जो 40 बच्चों की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा रही हैं। इस महिला का बस यही सपना है कि यह बच्चे पढ़-लिखकर अच्छे इंसान बन जाए। देवघर की मधुपुर के पसिया मोहल्ले के छोटे से घर में आदिवासी बेरना देत्त तिर्की बच्चों का ख्याल रख रही हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में
बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए बनाई संस्था
महिला ने अनाथ बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए बुलाहट नाम की संस्था बनाई है। जहां 17 युवतियां व 23 युवक को शिक्षा दिला रही है। खास बात यह है कि यहां पर पढऩे वाले बच्चों के माता-पिता नहीं है। अधिकर बच्चे अनाथ है।
कोराना काल में आई दिक्कत, पड़ हार नहीं मानी
कोरोना काल में बुलाहट नाम की संस्था को चला पाना काफी मुश्किल रहा है। लेकिन संस्था को चलाने वाली महिला ने हार नहीं मानी, और जैसे तैसे संस्था को कोराना काल में भी चलाया। उन्होंने इस संस्था की नीव साल 2007 में रखी थी, इसके बाद साल 2018 में इस संस्था के द्वारा सेवा दी जाने लगी।
दान के पैसे से चलता है घर
महिला बताती हैं कि दान के पैसे व सुअर पालन से बच्चों का खर्च निकलता है। वह बताती हैं कि बच्चों की फीस, उनके खाने के लिए भोजन व कपड़े के लिए कुछ लोग पैसा भी दान कर देते हैं।
क्या कहती हैं महिला
बेरना बताती हैं कि बुलाहट की नींव उन दिनों में रखने की सोची थी। जब मेरी मुलाकात मीना सोरेन से हुई थी। वह बताती हैं कि उनके पति, सास-ससुर व माता-पिता की तीन माह के दौरान मौत हुई थी। उनके दो बेटे व अकेली रहती थी। फिर हम उन्हें अपने साथ ले आए। यहीं से बुलाहट की नींव रखी गई। यहां पर मीना के बच्चों को तालीम दी जा रही है। वहीं मीना भी बीएड कर रही है। उनका बड़ा बेटा बीए तो छोटा बेटा इंटर में पढ़ रहा है।