गोबर का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में जो वाक्य क्लिक करता है वह है, ‘तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा है क्या ?’ इसके अलावा कुछ आलसी लोगों को ‘गोबर गणेश’ कहकर भी संबोधित किया जाता है. लेकिन जो लोग गोबर को बेकार की चीज़ समझते हैं, वह आज ये पढ़कर अपना ज्ञान जरा दुरस्त कर लें.
गांव के लोग गोबर से उपले बनाकर खाना पकाते हैं. लेकिन अब खाना तो दूर की बात हो गई है अब गोबर बेचकर किसान अपनी कमाई भी बढ़ा रहे हैं. गुजरात के किसानों गोबर की खाद बेचकर अपना पेट पाल रहे हैं. किसानों की मदद करने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने पशुधन मंत्रालय के साथ मिलकर 2 क्यूबिक की क्षमता वाले गोबर गैस प्लांट उनके घर के पास लगा दिए हैं. इस प्लांट के लग जाने से महिलाओं की भी काफी मदद हुई है, इससे इनको खाना पकाने के लिए गैस मिल रही है और किसान गोबर को खाद बनाने के लिए बेच रहे हैं, जिससे उनकी अतिरिक्त कमाई हो जाती है. गाय और भैंस पालने वाले लोगों की दूध से कमाई उतनी ज्यादा नहीं हो रही है, जिससे कि उनका परिवार चले सके. गाय पूरे साल दूध नहीं देती है वहीं भैंस की बात करें तो भैंस की कीमत इतनी ज्यादा होती है उसे खरीदना आसान नहीं होता है.
गोबर गैस प्लांट कैसे काम करता है
गुजरात के जकियारपुर गांव में लगे इस गैस प्लांट में जरुरत के अनुसार पानी और गोबर मिलाया जाता है. इस प्लांट से 30 से 45 दिन में मीथेन गैस निकलती है. प्लांट में दूसरी तरफ से निकलने वाले इस गैस के बाद बचा हुआ तरल गोबर एक टैंक में इकट्ठा करके बेचने के लिए रखा जाता है. अमूल के कर्मचारी किसान से इसे लीटर के हिसाब से खरीदते हैं और उन्हें उचित मूल्य भी इसका देकर जाते हैं.
महिलाओं की बढ़ गई है इससे आमदनी
स्लरी को बेचने से महिलाएं आत्मनिर्भर बन गई हैं. पशु के गोबर से कमाई का ये नया तरीका महिलाओं को बेहद पसंद आ रहा है. दूध देने के साथ-साथ पशुओं को गोबर भी हमारी कमाई का जरिया बन गया है. महिलाएं 2000-3000 रुपए महीना का कमा लेती है. स्लरी महिलाओें के एलपीजी सिलेंडर भी बचा लेती है.
देश के कई राज्यों के पशुपालक और किसानों को इस स्लरी के बारे में ज्ञान नहीं है. किसानों और पशुपालक की आय बढ़ाने के लिए स्लरी का प्रचार—प्रसार अन्य राज्यों में भी होना चाहिए. जिससे कि भारत के अन्य राज्यों के पशुपालक को भी इसका लाभ मिलें.