पुरूष प्रधान इस देश में महिलाओं को अपने पिता या सगे संबंधियों का अंतिम संस्कार करने का हक नहीं होता। इस देश में यह अधिकार बेटों को ही होता है। कई स्थानों पर महिलाएं स्वर्ग आश्रम में प्रवेश तक नहीं कर सकती । परंतु महाराष्ट्र में 12 बेटियों ने अपने पिता की अर्थी को कंधा देकर यह साबित कर दिखाया कि वह भी बेटों के बराबर हैं।
पिता के निधन पर दिया कंधा
महाराष्ट्र के वाशीम जिले के तहत आने वाले गांव शेदुरजना में 12 बेटियों ने साहसिक कदम उठाते हुए अपने पिता की अर्थी का कंधा देकर अपने बेटे होने का फर्ज भी निभाया है। गांव में रहने वाले 92 साल के सखाराम का 29 जनवरी को निधन हो गया था। उन्हें संतान के तौर पर 12 बेटियां थीं और कोई बेटा नहीं था। सखाराम गणपतराव काले ने अपनी बेटियों का लालन पालन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
सामाजिक कार्यकर्ता थे सखाराम
स्वर्गीय सखाराम हमेशा से ही सामाजिक कार्यों व लोगों के दुख सुख में बराबर शरीक होते थे। गांव में उनके नेक कार्यों की वजह से सभी लोग उनका सम्मान करते थे। मगर संतान के तौर पर उनके घर में बेटा नहीं था। वह 12 बेटियों के पिता थे। यही वजह है कि जब उनका निधन हुआ तो उनकी सभी बेटियों ने बेटों का फर्ज निभाते हुए उन्हें कंधा देते हुए उनकी अंतिम यात्रा को स्वर्गआश्रम तक पहुंचाया। इस मौके पर गांव के सभी लोग सखाराम की अंतिम यात्रा में शामिल हुए।
पिता की अंतिम इच्छा थी ये
इन बेटियों ने बताया कि बेटा ना होने के चलते उनके पिता सखाराम की अंतिम इच्छा थी कि उनकी सभी बेटियां ही उनकी अर्थी को कंधा दें और उनका दाहसंस्कार करें। अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुरूप ही सभी बेटियां इस अवसर पर अपने पिता का दाहसंस्कार करने के लिए पहुंची। सभी बेटियों ने पूर्ण रीति रिवाज के साथ इस कार्य को किया और अपने पिता की अंतिम इच्छा को फूल चढ़ाए। गांव के लोगों ने सखाराम के निधन पर शोक जताया है तथा उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को भी याद किया।