यदि आपके भीतर कुछ करने का हौंसला है तो फिर आपकी सफलता के पीछे खुद कुदरत भी अपना करिश्मा जरूर दिखाती है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से आमना सामना करवाएंगे, जिसे सुनकर आप बहुत कुछ सोचने पर विवश हो जाएंगे। यह कहानी है एक 35 साल की युवती की, जिसका स्कूल जाते समय एक्सीडेंट हो गया और इसमें वह अपना एक पैर खो बैठी। एक पैर से कोई क्या कर सकता है, शायद किसी को इसका अंदाजा भी नहीं होगा। लेकिन इस दिव्यांग युवती ने एक पैर के सहारे अपने हौंसले व कठिन परिश्रम से अपना खुद का बनाया हुआ मुकाम हासिल किया और आज उसकी कहानी सबसे अधिक प्रेरणादायी कहानियों में शामिल हो गई है।
एक पैर नहीं था, मगर की बॉडी बिल्डिंग
चीन की रहने वाली गुई याना ने अपने एक पैर के दम पर बॉडी बिल्डिंग में ना केवल खुद को स्थापित किया, बल्कि पैरा ओलंपिक में प्राईज जीतकर खुद को एक नई पहचान दी। एक पैर खोने के बाद कोई फिर से उठने का हौंसला नहीं जुटा पाता, मगर गुई ने नामुमकिन से इस काम को अंजाम देकर इतिहास रच दिया। 2004 में एंथेस में आयोजित पैरा ओलंपिक में गुई ने हिस्सा लिया और पुरस्कार भी जीता। इसके बाद आईडब्ल्यूएफ बीजिंग 2020 में हिस्सा लिया। इस आयोजन में गुई अपने एक पैर में हाई हील शू व बिकनी पहनकर स्टेज पर पहुंची तो लोगों ने उनके इस व्यक्तित्व को काफी अधिक सराहा। गुई ने इस आयोजन में प्रथम स्थान हासिल किया था।
आत्मविश्वास होना है बहुत जरूरी
गुई कहती हैं कि उन्होंने इस आयोजन में पहला स्थान अपने मसल्स और प्रोफेशनलिज्म से जीता था, मगर स्टेज पर सब के सामने आने के लिए उनमें आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी था। इसी आत्मविश्वास के बल पर ही एक पैर के साथ वह लोगों के सामने आई। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए गुई ने काफी संघर्ष किया है। उनके पिता का देहांत उनके जन्म लेने से पहले ही हो गया था। उनकी मां ने अकेले ही उनका लालन पालन किया। 2001 में उन्होंने पैरा खेलों में हिस्सा लेना शुरू किया। वह जिम में रोजाना कई घंटों तक वर्क आऊट करती है। बता दें कि टिकटॉक पर उनके दो लाख से भी अधिक फालोअर हैं।
खूब खाए धक्के, मगर नहीं मिली नौकरी
गुई बताती है कि दिव्यांगता की अवस्था में होने के बावजूद उन्होंने 20 से भी अधिक कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया, इसके लिए उन्होंने बहुत धक्के खाए। मगर किसी ने भी उन्हें इसके लिए नहीं चुना और नौकरी ना देने के पीछे उनके दिव्यांग होने का हवाला दिया गया। मगर उसने हौंसला नहीं छोड़ा और आज वह इस मंजिल पर पहुंचने में सफल रही है। इस मुश्किल व कठिन दौर से गुजरने के बाद ही वह आज इस सफलता के मुकाम पर पहुंच पाई है।