इन दिनों शहद के असली व नकली होने को लेकर देश में एक बहस सी छिड़ी है। पिछले दिनों यह खबर खूब चर्चा में आई कि कई बड़ी कंपनियों के शहद नकली और हानिकारक हैं। इस खबर ने इतनी सुर्खियां बटोरी की अब लोग असली शहद की तलाश में रहते हैं। वहीं दूसरी ओर शहद बेचने वाली कंपनियों के कारोबार में बहुत गिरावट भी दर्ज की गई है। इसी कड़ी में आज हम आपको शहद की खेती करने वाले एक ऐसे युवक से रूबरू करवाएंगे, जिसने इटालियन मधुमक्खी से शहद बनाकर लाखों रुपए की कमाई शुरू कर दी है।
राजकोट के नीलेश की है ये कहानी
यह कहानी है राजकोट निवासी नीलेश की। नीलेश ने एग्रोनॉमी में स्नातक की शिक्षा ग्रहण की है। इसके बाद उन्होंने मधुमक्खी पालन को अपने बिजनेस के रूप में चुनने की ठानी। हालांकि इस व्यवसाय में उनके सामने कई चुनौतियां थीं, इसके बावजूद उन्होंने इन सभी चुनौतियों को दरकिनार करते हुए अपने व्यवसाय की शुरूआत की। पहले पहल नीलेश ने मधुमक्खियों की 50 पेटियों से शहद बनाना शुरू किया। उनके शुद्व शहद की मांग इतनी तेजी से बढ़ी कि देखते ही देखते एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने शहद का उत्पादन कई गुणा अधिक बढ़ा दिया। नीलेश ने अपने शहद के व्यवसाय से एक साल में सात लाख रुपए से भी अधिक का धंधा कर लिया।
पहले लिया प्रशिक्षण फिर शुरू किया काम
नीलेश ने 2019 में अपना यह काम शुरू किया। इसके लिए 23 साल के नीलेश ने बकायदा 6 महीने का प्रशिक्षण भी लिया। अपने इस बिजनेस को पंख देने के लिए नीलेश ने शुरू में सोशल मीडिया का भी सहारा लिया और देखते ही देखते इस व्यवसाय से रफ्तार पकड़ ली। शहद की मांग बढ़ते ही नीलेश ने इसका उत्पादन 1800 किलो तक बढ़ा दिया। पहले ही साल में नीलेश ने शहद उत्पादन के काम से सात लाख रुपए तक की कमाई की।
इटेलियन मक्खी से बनाया शुद्व शहद
उनके अनुसार इटेलियन मधुमक्खियों से शहद का उत्पादन अधिक होता है। इसलिए उन्होंने अपने काम के लिए इनका चयन किया। इटेलियन के बाद नीलेश ने देसी मधुमक्खियों की ओर भी रूख कर लिया है। उनका कहना है कि शहद उत्पादन के लिए मधुमक्खियों का आना जाना काफी अधिक होता है। इसलिए उन्हें उन इलाकों में भी जाना पड़ता है, जहां फूलों की खेती बहुत अधिक होती है।
फूलों के रस से ऐसे बनता है शहद
शहद बनाने के लिए मधुमक्खियों को फूलों का रस चाहिए होता है। रस चूसने से ही वैक्स की बनी हुई पेटी में मधुमक्खी मल त्याग करती हैं। यही मल धीरे धीरे शहद में बदल जाता है। यह शहद कच्चा होता है, इसके बाद उसे पकाने के लिए दो सप्ताह का समय लगता है। जब यह शहद पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाता है, तब उसका उपयोग किया जाता है।
इतनी जगह की होती है जरूरत
नीलेश का कहना है कि शहद बनाने के लिए 200 से 300 पेटियां काफी होती हैं। पंरतु इसके लिए करीब करीब 5 हजार स्केयर फुट जमीन की जरूरत पड़ती है। उनके अनुसार मधुमक्खी की चार प्रजातियों में से इंटेलियन प्रजाती सबसे बेहतर और शांत होती हैं। उनसे शहद की क्वालिटी और उत्पादन दोनों ही बढिय़ा रहता है। उनके अनुसार शहद उत्पादन से हर महीने लाखों रुपए की कमाई आसानी से की जा सकती है। लेकिन इसके लिए कठिन परिश्रम और लगन की भी बहुत जरूरत होती है।