सोनम मलिक मात्र 18 साल की है, मगर उनका हौंसला व जज्बा गजब का है। कठिन परिश्रम के दम पर सोनम ने बड़ी से बड़ी मुश्किलों को हराया है। ना केवल दंगल के मैदान में बल्कि अपने निजी जीवन में भी सोनम ने मुसीबतों का डटकर सामना किया है। हरियाणा के सोनीपत के मदीना गांव में 2002 को जन्मीं सोनम ने अब तक कई मैडल जीते हैं। जब उनका कैरियर आसमान में उड़ान भरने के लिए तैयार था, तभी वह एक ऐसे एक्सीडेंट का शिकार हो गईं ,जिससे उनका पूरा कैरियर बर्बादी की कगार पर आ खड़ा हुआ। डाक्टरों ने उनसे पहलवानी करने से मना कर दिया । 2017 में एक राज्य स्तरीय कुश्ती के दौरान सोनम को ऐसी चोट लगी कि उनका करियर लगभग खत्म हो गया था।
सोनम ने नहीं मानी हार
मगर सोनम ने हार नहीं मानी और खुद को ठीक करने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया। करीब डेढ साल तक वह अपनी चोट से जूझती रही। अपने इसी हौंसले व मानसिक मजबूती के दम पर वह फिर से उठ खड़ी हुई और अपने जुनून तथा धैर्य का परिचय देते हुए टे्रनिंग शुरू की। इसका नतीजा यह निकला कि सोनम ने दंगल के मैदान में फिर से अपना परचम लहरा दिया। उन्होंने रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक को 62 किलोग्राम में ना केवल चुनौती दी, बल्कि उन्हें दो बार हराकर अपनी कामयाबी का इतिहास लिख दिया।
टोक्यो ओलंपिक के लिए किया क्वालीफाई
इसके बाद सोनम ने टोक्यो ओलंपिक के क्वालीफायर्स के लिए खुद को क्वालीफाई करके दिखा दिया कि उनमें पूरा दमखम है। दरअसल सोनम बचपन से ही पहलवान बनना चाहती थी। उनकी नींव ही पहलवानी के आधार पर पड़ी थी। घर में पिता और भाई पहलवानी से जुड़े थे। इसलिए जब उनके पिता के एक दोस्त ने एकेडमी खोली तो सोनम ने वहां जाना शुरू कर दिया। विपरित हालातों में भी सोनम ने बढिय़ा प्रेक्टिस की तथा वर्ष 2016 में नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर दिखाया।
इसके बाद जीते कई मैडल
इसके बाद सोनम का हौंसला कई गुणा ज्यादा बढ़ गया और एक के बाद एक कई मैडल जीतकर सोनम ने अपना व अपने परिवार का नाम रोशन किया। वर्ष 2017 में सोनम ने अपना दमखम दिखाते हुए वल्र्ड कैडेट रेसलिंग प्रतियोगिता में सोना जीता। जिसके बाद उसे बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए आऊटस्टैडिंग परफार्मेंस का खिताब भी दिया गया। सोनम का कहना है कि वह अपने देश के लिए मैडल की लाईन लगा देगी। उन्होंने कहा कि उनके माता पिता का हमेशा उसे पूरा साथ मिला है। यही वजह है कि वह आज इस मुकाम तक पहुंच पाई है।