New Delhi: दशरथ मांझी के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जिनके जीवन पर बॉलीवुड में सिनेमा भी बना है। मांझी द माउंटेन मैन। इस फिल्म में एक डायलॉग कुछ इस प्रकार था कि जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं। यह डायलॉग आईएएस अफसर प्रदीप सिंह पर बिल्कुल सटीक बैठती है। क्योंकि उन्होंने दो बार यूपीएससी की परीक्षा दी और दोनों बार इस कठिन परीक्षा को पास किया। लेकिन पहले प्रयास में उन्हें आईएएस कैडर नहीं मिला तो उन्होंने दोबारा परीक्षा देने का रिस्क भी लिया। प्रदीप सिंह ने साल 2019 में 26वीं रैंक लाकर आईएएस बने और अपना सपना पूरा किया। बताते चले कि इससे पहले उन्हें साल 2018 में 93वीं रैंक मिली थी। इस दौरान उन्हें आईआरएस कैडर मिला था। चलिए जानते हैं प्रदीप सिंह के बारे में
बेटे को पढ़ाने के लिए पिता ने बेच दिया था घर
प्रदीप सिंह उन्ही लाखों छात्रों जैसे ही थे, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। प्रदीप के पिता एक पेट्रोल पंप पर काम करते थे। उन्होंने बेटे को दिल्ली पढऩे के लिए भेजा। इस दौरान उन्होंने अपने घर को भी बेच दिया। प्रदीप पर भी प्रैशर था कि अगर पढ़ कर अफसर नहीं बन पाए तो क्या होगा। लेकिन वह दिन रात मेहनत करते गए।
डेढ़ साल की मेहनत रंग लाई
प्रदीप लगातार दिल्ली में पढ़ाई कर रहे थे। दिन में 10 से 12 घंटे की पढ़ाई के दौरान उन्होंने पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी। जिसमें वह सफल हुए। उन्हें 93वीं रैंक मिली। परिवार में सभी खुश थे कि बेटे ने परिवार का नाम रौशन कर दिया। लेकिन प्रदीप खुश नहीं थे, उनका सपना जैसे मानों अभी अधूरा ही था।
आईएएस बनने का था सपना
आईआरएस में चयन होने के बावजूद भी शायद प्रदीप कुछ मिस कर रहे थे। वह मिस कर रहे थे आईएएस बनने का सपना। जिसे उन्होंने साल 2019 में पूरा किया। प्रदीप बताते हैं कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा देने के बारे में सोचा और दोगुना मेहनत के साथ साल 2019 में परीक्षा दी और इस बार 26वीं रैंक लाकर आईएएस बने।
क्या कहते हैं प्रदीप
प्रदीप कहते हैं कि इस परीक्षा को देने के साथ पेशेंस रखना बेहद जरूरी है। साथ ही एक बात ध्यान रखे सच्ची और कड़ी मेहनत कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। वह कहते हैं कि सुधार की गुंजाइश बेहद ही जरूरी है। प्रदीप आगे कहते हैं कि कई बार परीक्षा देने के दौरान सफलता व विफलता मिलती है। विफल होने पर निराश होने की जगह पर अगली बार पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दे।