जिस महिला को कभी डायन कहकर मानसिक व शरीरिक तौर पर प्रताडि़त कर यातनाएं दी गई, उस महिला को पदमश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। यह कहानी है झारखंड की जुझारू महिला छुटनी महतो की। 25 साल पहले छुटनी महतो को गांव में डायन कहकर इतना प्रताडि़त किया गया था कि ना केवल उसके बलात्कार का प्रयास किया गया, बल्कि उसे अपना घर और गांव तक छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ा। छुटनी महतो ने अपने साथ हुई इस प्रताडऩा से सबक लेकर उन महिलाओं के लिए संघर्ष किया, जिन्हें उनके घर वालों ने डायन कहकर घर से निकाल दिया। सालों तक पीडि़त महिलाओं के लिए अभियान चलाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता छुटनो महतो को सरकार ने पदमश्री के पुरस्कार से नवाजकर उनके द्वारा किए गए कार्यों का सम्मान किया है।
छुटनो पर हुए अत्याचार असहनीय थे
छुटनो महतो ने अपनी जिदंगी में इतने दुख झेले हैं, जिस पर इंसान अपनी जीवन लीला को ही समाप्त कर ले। मगर छुटनो ने अपने साथ हुए अत्याचारों को सहते हुए डायन प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया है। छुटनो ने सालों तक इतने दुख झेले,जिन्हें सुनकर लोगों की रूह कांप उठती है। छुटनो की दुख भरी कहानी 1995 में तब शुरू हुई है, जब उनके पड़ोस में एक बच्ची बीमार हो गई। लोगों ने उस पर शक किया और कहा कि मैंने कोई टोना किया है। इसके चलते ही एक तांत्रिक के कहने पर उसे गांव में डायन मान लिया गया।
जान बचाने के लिए घर से भागी छुटनो
तांत्रिक के कहने पर उसे जान से मारने की कोशिश की गई। जैसे ही उसे इस बात का पता चला तो वह अपने चार बच्चों के साथ गांव छोडक़र भाग गई। गांव से दूर एक पेड के नीचे उसने शरण ली और आठ महीने तक वहीं रही। बाद में वह अपने पति को लेकर मायके आ गई। हालांकि पति भी उन्हें व उनके बच्चों को मायके में छोडक़र अपने गांव चले गए। जोकि आज तक वापिस लौटकर नहीं आए। इसके बाद उन्होंने घोर नक्सली क्षेत्र सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड के बीरबांस गांव में रहकर डायन प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।
डायन प्रथा के खिलाफ बुलंद की आवाज
छुटनो महतो ने डायन प्रथा के खिलाफ लोगों को एकजुट करना शुरू किया। इस प्रथा की शिकार सैंकड़ों महिलाओं को आश्रय दिया। उन्हें अपने पास रखा, खिलाया, पिलाया और उनकी हिम्मत को बढ़ाकर इस प्रथा के खिलाफ अभियान में शामिल किया। इस तरह से सालों साल छुटनो महतो ने डायर प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की। उनकी मेहनत रंग लाई और लोगों ने इस प्रथा से किनारा करना शुरू कर दिया। मगर इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की एवज में उन पर इतने जुल्म किए गए, जिसे वह बयान करते हुए आज भी रो पड़ती है।
अपने परिवार के साथ रहती है छुटनो
छुटनो महतो के अनुसार वह सैंकड़ों महिलाओं को डायन प्रथा के तहत न्याय दिलवा चुकी है। अभी वह मुफ्त कानूनी सलाह के तहत महिलाओं को न्याय दिलवाने के काम में जुटी हुई हैं। फिलहाल छुटनो महतो अपने तीन पुत्र, दो पुत्रवधू और पोतेे-पोतियों के भरपूरे परिवार के साथ बीरबांस गांव में रहती है। सोमवार की शाम को उन्हें फोन पर पदमश्री पुरस्कार मिलने की सूचना प्राप्त हुई। जिसके बाद उनका कई जगहों पर शानदार स्वागत भी हुआ है।