ड्राइविंग की फील्ड में महिलाओं को हमेशा कमजोर समझा जाता था। कहा जाता है कि वाहन चलाते समय महिलाओं का आत्मविश्वास कमजोर होता है। लेकिन गुलेश कुमार ने अपनी ड्राइविंग से लोगों के इस मिथ को तोड़ दिया है।
पति की मौत के संभाला गाड़ी का स्टेयरिंग
गुलेश पति की मौत के बाद पूरी तरह से टूट गई थी। उनके पास एक नौ साल का बेटा भी था। ऐसे में घर में कोई ऐसी जमा पूंजी भी नहीं थी। जिसके भरोसे घर को चलाया जा सके। ऐसे में गुलेश ने पति की मौत के साथ गाड़ी का स्टेयरिंग संभाला। वह 13 सालों से उबर के लिए ड्राइविंग कर रही है। पति की मौत से पहले गुलेश एक डिर्पाटमेंटल स्टोर में जॉब करती थी। जहां उसे प्रतिदिन केवल 500 रुपए ही मिलते थे। जबकि उबर की गाड़ी चलाने के बाद दो हजार रुपए कमाने लगी। अब गुलेश दूसरी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही है।
सुष्मिता एक्टिवा से लोगों को मंजिल तक पहुंचाती
पश्विम बंगाल के दुर्गापुर की रहने वाले सुष्मिता टू व्हीलर चलाने का काम करती है। वह होंडा एक्टिवा से लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का काम करती है। सुष्मिता पिछले तीन साल से इंडियन ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क कंपनी ओला के लिए कार ड्राइविंग कर रहे हैं। सुष्मिता कहती है कि वह अपने कमाए पैसों से बच्चों के लिए गिफ्ट करती है। जिससे उन्हें काफी खुशी मिलती है।
2 हजार महिलाओं को दे रही ड्राइविंग की ट्रेनिंग
सुष्मिता कहती है कि वह 2 हजार महिलाओं को ड्राइवर की ट्रेनिंग दे रही है। वह बताती है कि महिलाओं को भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर होना चाहिए। ताकि कोई भी उनके सम्मान के साथ न खेल सके। सुष्मिता बताती है कि महिलाएं हर वो काम कर सकती है कि जिन्हे करने के लिए पुरुष दंभ भरते हैं।