अक्सर गरीब परिवारों के बच्चे प्रतिभाशाली तो होते हैं, लेकिन सही मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण वह दिशा भटक जाते हैं। हालांकि कई अभिभावक अपने जीवन में संघर्ष करते हुए भी अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन देते हैं। बच्चे भी अपने परिवार के सपनों को पूरा करते हैं। बिहार के गोपालगंज जिले की गरीब परिवार में जन्मी मंजू का जीवन भी पूरे संघर्षों से भरा रहा। मंजू के दादा बूूट पालिश करते थे। जबकि उनके पिता नौकरी न मिलने के अभाव में खेती बाढ़ी करने लगे। वहीं उनकी मां भी कम पढ़ी लिखी थी। सबसे मिलकर मंजू के सपनों को पूरा करने के लिए जान लगा दी। मंजू ने भी अपने परिवार की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए डाक्टर बनकर उनका सपना पूरा किया।
बेटा नहीं होने की वजह से परिवार पर था दवाब
मंजू के परिवार को न केवल आर्थिक तरीके से बल्कि सामाजिक रूप से भी कई तरह के तनाव झेलने पड़े। परिवार में बेटा नहीं होने के कारण उनके पिता पर दवाब डाला गया कि वह दूसरी शादी कर ले। ताकि बेटा मिल सके। लेकिन पिता को अपनी बेटी पर ही पूरा भरोसा था कि वह बेटों से अधिक समाज में उनका मान रखेगी। मंजू बताती है कि उनके बनकटा गांव में न पक्की सडक़े थी। न ही उनके मकान पर छत थी। जीवन का वह दौर पूरी तरह से मुश्किलों से भरा हुआ था।
सामाजिक तानों के बावजूद जज्बे को नहीं होने दिया कम
मंजू के अनुसार सामाजिक तानों के बावजूद उन्होंने अपने जज्बे को कम नहीं होने दिया। उनके गांव में लड़कियों को घर से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं थी। जब वह पढ़ाई करने जाती थी तो उनके परिवार को ताने दिए जाते थे। कहां जाता था कि लड़कियों को इतना पढ़ाना फिजूल है। इसके बावजूद मंजू ने अपने जज्बे को कम नहीं होने दिया। दसवीं में अच्छे अंक लाने के बाद मंजू आगे की पढ़ाई के लिए अपने गांव से पटना चली गई।
पटना में भी खत्म नहीं हुई जीवन की समस्याएं
मंजू अपने गांव से पढ़ाई के लिए पटना तो आ गई, लेकिन पटना भी उनके जीवन की समस्याएं खत्म नहीं हुई। उन्हें रोजाना 20 किलोमीटर साईकिल चलाकर अपने मेडिकल कालेज जाना पड़ता था। किताब खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। सहेलियों से किताबे उधार लेकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। मंजू कहती है कि अपने जीवन के लक्ष्य को भी कभी भी कमजोर मत होने दो। जो इंसान लगातार अपने जीवन में प्रयास करता रहता है कि वह आखिर में सफल होता है।