इंसान के जीवन में कई बार संंघर्ष की इतनी इंतहा हो जाती है कि वह हिम्मत हार जाता है। वह अपने जीवन को ही अपनी किस्मत मान लेता है। आगे बढऩे के सभी प्रयास छोड़ देता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मंजिल पर पहुंचने का जज्बा लेकर अपने रास्ते पर चलते है। अंत में मंजिल को पाकर ही दम लेते है। पंजाब के फरीदकोट जिले से आने वाले कुलदीप ऐसे ही युवाओं में शामिल है। जिन्होंने संघर्ष करते हुए अपना बचपन बिताया, कई मुसीबत झेली। लेकिन अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। अंत में उनकी जीत हुई। उन्होंने पंजाब सिविल सर्विसेज के घोषित रिजल्ट में सफलता हासिल की।
पिता के साथ मजदूरी करने में निकल गया बचपन
कुलदीप बताते है कि उनका पूरा बचपन आर्थिक तंगी से गुजरा। वह अपने पिता के साथ मजदूरी करते थे। हालांकि हालातों के आगे वह भी डिगे नहीं। कई बार खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। प्रतिमाह आने वाले राशन में केवल घर की कुछ जरूरी चीजे ही आती थी। कुलदीप ने आठवीं कक्षा तक गांव के ही सरकारी स्कूल में शिक्षा हासिल की। वह अपने पिता के साथ मजदूरी करते थे। रात के समय कुलदीप का ध्यान केवल अपनी किताबों में होता था। कुलदीप बताते हंै कि उन्होंने पहले मजदूरी फिर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खर्च निकाला।
बिना आत्मविश्वास के नहीं किया जा सकता कुछ हासिल
कुलदीप बताते हैं कि आप पढ़ाई में कितने भी प्रतिभावान हो। लेकिन आपके भीतर आत्मविश्वास नहीं है तो सब कुछ बेकार है। बिना आत्मविश्वास के कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है। वह बताते है कि पंजाब यूनिवर्सिटी में आने के बाद भी उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना जारी रखा। वकील के हेल्पर के तौर पर काम किया। कुलदीप के अनुसार उन्होंने अपने जीवन में सघर्ष देखा था कि जरूरतमंद लोगों के केस में मुफ्त में लड़े। कुलदीप कहते है कि उनके परिवार में आज तक किसी ने नौकरी नहीं की। उन्हें सीधा सरकारी नौकरी मिला और वह जज बन गए। अभिभावक अपने बच्चों को शुरुआत से ही पढ़ाई का दवाब देने लगते है। जिससे बच्चे बिखर जाते हैं। वह बताते है कि शुरुआत से औसत स्टूडेंट रहे। लेकिन अपने तीसरे प्रयास में जज बन गए।