हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती, लहरों से डरकर कभी नौका पार नहीं होती। यह कहावत एक ऐसे युवक पर फिट होती है, जिसने बचपन से ही विकलांग होने का दर्द झेला है, मगर आज वह अपने मजबूत हौंसले की दम पर खुद का भविष्य लिख रहा है। इस युवक का नाम है महेश, जोकि अंबिकापुर की डिगामाी गांव के रहने वाले हैं। कुदरत ने महेश को विकलांगता (दिव्यांगता) का ऐसा दर्द दिया है, जिससे उसका जीवन दुश्वार हो गया है। इसके बावजूद महेश अपनी किस्मत को दोष देने की बजाए खुद की मेहनत पर भरोसा करना जानता है। इसलिए महेश ने अपनी दिव्यांगता को अपने लिए हथियार बना लिया और हाथों की बजाए पैरों से पढऩा शुरू कर दिया।
पढऩे का दिखाया जज्बा
महेश को पता है कि शिक्षित आदमी ना केवल खुद की बल्कि दूसरों की तकदीर बनाने में भी सक्षम होता है। इसलिए महेश ने पढ़ लिखकर कुछ बड़ा काम करने का निर्णय लिया है। बता दें कि महेश का बचपन से ही एक हाथ अविकसित है तो दूसरा हाथ है ही नहीं। मगर महेश ने अपने पैरों को ही हाथ बनाकर उससे पढऩे की शुरूआत कर दी है।
पैरों से देगा दसवीं की परीक्षा
महेश ने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए पैरों से ही दसवीं की परीक्षा देने का निर्णय लिया है। महेश ने नौवीं की परीक्षा इसी तरह से अपने पैरों से शिक्षा ग्रहण करके पास की है। लेकिन अब उसने दसवीं की परीक्षा पास करने का बीड़ा अपने कंधों पर ले लिया है। महेश का कहना है कि वह पढ़ लिखकर एक अध्यापक बनना चाहता है, ताकि औरों को भी वह शिक्षा की लौ से जोडऩे में सफल हो सके। सिटीमेल न्यूज ऐसे मजबूत और हौंसले के धनी युवक को सलाम करता है।