New Delhi । परिवारवाद और बदलबदलूओं को लेकर हमेशा विपक्षी दलों पर प्रहार करती रही बीजेपी 2024 के विधानसभा चुनाव में खुद परिवारवाद और बदलबदलूओं के सहारे तीसरी बार सत्ता में आने का सपना देख रही है। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए हरियाणा में बीजेपी ने जहां दर्जन भर दलबदलूओं पर भरोसा जताया है, वहीं परिवारवाद को ठेंगा दिखाते हुए टिकटों की जमकर बंदरबांट भी की गई है। वहीं जो भाजपा नेता बरसों से अपनी पार्टी की सेवा कर रहे थे, उन्हें अब खून के आंसू रोने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
सबसे पहले बात करेंगे, उन बदबदलूओं की, जिन्हें बीजेपी ने अपना सरताज बनाया है और जिनके सहारे वो तीसरी बार सत्ता में आने का ख्वाब देख रहे हैं। ये नेता जेजेपी, कांग्रेस और इनेलो से बीजेपी में आए हैं और आते ही टिकट का तोहफा लेकर चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं। इनमें पहला नाम है जेजेपी के वरिष्ठ नेता और विधायक देवेंद्र बबली का, जोकि बीजेपी की गठबंधन सरकार में मँत्री भी रहे हैं। देवेंद्र बबली की आस्था देखी जाए तो उन्होंने लोकसभा चुनाव में हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी कुमार शैलजा को जिताने में पूरा दमखम लगाया और बीजेपी प्रत्याशी अशोक तंवर को हराकर दम लिया था। बबली ने पहले कांग्रेस से टिकट हासिल करने के लिए जोर अजमाईश की, लेकिन जब वहां से उन्हें रिजेक्ट कर दिया तो वो आनन फानन में बीजेपी के दरवाजे पर जा खड़े हुए। हैरत की बात है कि बीजेपी ने उन्हें हाथों हाथ लिया और स्वागत करते हुए टोहाना से टिकट दे दी, जबकि इस सीट से बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला टिकट के पहले हकदार थे। सोनीपत में कांग्रेस से आए निखिल मदान को टिकट दे दी गई, जबकि इस सीट से बीजेपी की पुरानी और वफादार नेता कविता जैन का दावा प्रबल माना जा रहा था।
लेकिन टिकट ना मिलने पर अब कविता जैन खून के आंसू रो रही हैं। ठीक इसी तरह से तोशाम भिवानी से शशि परमार का पत्ता काटकर दो दिन पहले कांग्रेस से आई पूर्व सांसद श्रृति चौधरी को टिकट थमा दिया गया। इसके बाद से तो शशि परमार का रो रोकर बुरा हाल है। आपको पता ही होगा कि श्रृति की मां किरण चौधरी को हाल ही में बीजेपी ने राज्यसभा सांसद बनाया है। ठीक इसी तरह से जेजेपी से पिछले पांच साल विधायक रहे रामकुमार गौतम दुष्यंत चौटाला के साथ साथ बीजेपी को भी गाहे बगाहे कोसते रहे हैं, लेकिन जब वो बीजेपी में आए तो तत्काल उन्हें अपना उम्मीदवार बना लिया गया। जेजेपी विधायक पवन कुमार पर भी बीजेपी ने इतनी मेहरबानी दिखाई कि अपने भाजपाई को छोडक़र उन्हें अपना उम्मीदवार बना लिया। जेजेपी के विधायक और पूर्व मंत्री अनूप धानक और संजय काबलाना को भी तोहफे में बीजेपी का टिकट मिला है, जबकि इनेलो से आए श्याम सिंह राणा को बीजेपी ने तत्काल अपनी गोद में बिठा लिया और अपने पुराने तथा वफादार नेताओं की बलि चढ़ाकर उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी और राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा की मां शक्तिरानी शर्मा पर भी बीजेपी ने पूरा भरोसा जताया और दो दिन पहले बीजेपी में शामिल होने के बाद अब उन्हें भी टिकट दे दी गई । वहीं परिवारवाद को कोसने वाली बीजेपी ने अपने पार्टी के परिजनों पर भी पूरा आत्मविश्वास दिखाया है। यानि कि बीजेपी ने साबित कर दिया कि परिवारवाद उनके खुद के लिए नहीं है, ये नारा अन्य दलों के लिए है, यही वजह रही कि पहली सूची में पूर्व मंत्री करतार भड़ाना के बेटे मनमोहन भड़ाना, राव इंद्रजीत की बेटी आरती राव, कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई, किरण चौधरी की बेटी श्रृति चौधरी, सतपाल सांगवान के बेटे सुनील सांगवान को टिकट देकर एक तरह से परिवारवाद की भाजपाई भाषा को नए सिरे से परिभाषित कर दिखाया है। टिकट वितरण की पहली लिस्ट के बाद अब वो भाजपाई खून के आंसू रो रहे हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बीजेपी को समर्पित किया है और अब वहां कोहराम और इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है। फिलहाल जो लोग बीजेपी पर गददारी के आरोप लगा रहे हैं, उनमें पहला नाम है शशि रंजन का, जिनकी टिकट तोशाम से काट दी गई है और अब वो खून के आंसू रो रहे हैं।
दूसरी नेता है सोनीपत से पूर्व मंत्री कविता जैन, जिनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे और जो लोग इस्तीाफा दे रहे हैं, उनमें हिसार से तरूण जैन, गुरूग्राम से नवीन गोयल, इंद्री से पूर्व मंत्री कर्णदेव कंबोज, रतिया से विधायक लक्ष्मण नापा, सफीदो से पूर्व मंत्री बच्चन सिंह आर्य, हिसार से पूर्व मंत्री सावित्री जिदंल, रानियां से मंत्री रणजीत सिंह और पूर्व मंत्री विशंभर बाल्मीकि के नाम शामिल हैं। अब ये सभी लोग खुद की जीत के लिए नहीं बल्कि बीजेपी की हार के लिए चुनाव मैदान में उतरेंगे और इनमें से कई पार्टी उम्मीदवार का विरोध कर उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। हो सकता है कि दूसरी लिस्ट के साथ इस्तीफों का दौर और ज्यादा रफ्तार पकड़ ले। फिलहाल तमाम लोगों की नजर दूसरी लिस्ट पर टिकी है। दोस्तों अब इस बारे में आपकी क्या राय है, क्या बीजेपी ने अपनों को छोडक़र दूसरे दलों के नेताओं पर भरोसा जताकर ठीक किया या गलत, इस पर अपने कमेंट जरूर करें।