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हरियाणा में कांग्रेस के 10 बागी माने , ललित, शारदा, रेवड़ी और चित्रा के बगावती तेवर

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चंडीगढ़। हरियाणा में कांग्रेस से बागी होकर चुनाव मैदान में निर्दलीय कूदने वालों को अब पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुडडा मनाने के अभियान पर निकल पड़े हैं। बाप बेटे को ये अच्छी तरह से पता है यदि इस बार सत्ता नहीं मिली तो फिर उनकी राजनीति खत्म। इसलिए दोनों बाप बेटे बागियों को मनाने की कोशिशों में जुट गए हैं। इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता मिली है तो कईयों ने चुनाव मैदान से पीछे हटने से साफ इंकार कर दिया है। इनमें बल्लभगढ़ से शारदा राठौर, तिगांव से ललित नागर, पानीपत से रोहिता रेवडी और अंबाला से चित्रा सरवारा हैं, टिकट ना मिलने पर अब ये चारों निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं और इनकी वजह से कांग्रेस उम्मीदवारों की हार तय है।

तो चलिए सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर वो कौन से निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जिन्हें भूपेंद्र सिंह हुडडा और उनके बेटे दीपेंद्र हुडडा मनाने में कामयाब रहे। प्रदेश में करीब दस उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपने पर्चे वापिस लिए हैं। इनमें पटौदी से सुधीर चौधरी, सोहना से समसुदीन और प्रदीप, नीलोखेडी से राजिंदर, अंबाला सिटी से जयबीर मल्लौर और हिम्मत सिंह का नाम शामिल है, वहीं नलवा से 6 बार के विधायक और पूर्व वित्त मंत्री संपत सिंह को भी हुडडा ने नामांकन वापिस लेने के लिए मना लिया, उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अनिल मान के खिलाफ चुनाव लडऩे का ऐलान किया था। ठीक इसी तर्ज पर पूर्व सीएम ने बवानी खेडा से निर्दलीय ताल ठोंकने वाले पूर्व सीपीएस रामकिशन फौजी को भी अपनी उम्मीदवारी वापिस लेने के लिए तैयार कर लिया। हांसी से कांग्रेस उम्मीदवार राहुल मक्कड के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले प्रेमसिंह मलिक, सुमन शर्मा और नरेश को भी नामांकन पत्र वापिस लेने के लिए मना लिया।
लेकिन वहीं कांग्रेस में टिकट के कुछ ऐसे दावेदार भी हैं, जिनकी टिकट कटने पर वो दूसरी पाॢटयों में चले गए और अब चुनाव मैदान में डटकर खउ़े हैं।

जगाधरी से आदर्श पाल सिंह ने 2019 में बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और करीब 48 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे पंरतु बाद में हुडडा खेमे से जुडक़र वो कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला और र्शैलजा खेमे से अकरम खान पर कांग्रेस ने दोबारा भरोसा कर लिया। अकरम खान 2019 में भी कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े थे और बीजेपी के कंवरपाल गुर्जर से कड़े मुकाबले में हार गए थे। कांग्रेस ने उन पर फिर से भरोसा जताया और टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया। अब आदर्शपाल सिंह आम आदमी पार्टी की टिकट लेकर चुनाव लड़ रहे हैं। सढौरा से बृजपाल भी कांग्रेस की टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने मौजूदा विधायक रेणूबाला को ही बेहतर समझा, अब विद्रोह करते हुए बृजपाल इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुई पूर्व विधायक रोहिता रेवड़ी भी पानीपत से निर्दलीय कूद पड़ी हैं, उन्होंने अपना नाम वापिस लेने से मना कर दिया, वो कांग्रेस के वीरेंद्र सिंह शाह के खिलाफ ताल ठोंक रही हैं।

कुछ ऐसी ही कहानी बल्लभगढ़ से 2005 और 2009 में कांग्रेस विधायक रहीं शारदा राठौर की भी है। 2014 में कांग्रेस से उन्हें टिकट नहीं मिला और जब 2019 में उनकी टिकट कांग्रेस से फाईनल हुई तो वो राजनैतिक उलझन में फंसकर बीजेपी में शामिल हो गई। लेकिन बीजेपी ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया। वक्त के इंतजार में वो चुपचाप बीजेपी में अपनी उपेक्षा झेलती रहीं और 2022 में फिर कांगे्रेस में शामिल हो गईं। लेकिन इस बार कांग्रेस ने फिर से उन्हें टिकट नहीं दिया, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय पर्चा दाखिल कर दिया। वहीं कांग्रेस ने युवा चेहरे पराग शर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। लेकिन बल्लभगढ़ में अब सीधा मुकाबला बीजेपी के मूलचंद शर्मा और शारदा राठौर के बीच माना जा रहा है।

वहीं तिगांव से भी कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक ललित नागर की टिकट काट दी, जिसके बाद उन्होंने पंचायती उम्मीदवार के तौर पर निर्दलीय चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया। तिगांव सीट पर भी ललित नागर और बीजेपी उम्मीदवार राजेश नागर के बीच कड़ा मुकाबला है। बल्लभगढ़ और तिगांव में फिलहाल कांग्रेस उम्मीदवार मुकाबले में ही दिखाई नहीं दे रहे। लेकिन इन दोनों ने भी अपने नामांकन वापिस लेने से साफ इंकार कर दिया है। चर्चा तो ये है कि कहीं ना कहीं इनकी टिकट कटने से हुडडा परिवार भी मायूस है, इसलिए वो तिगांव और बल्लभगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशियों से दूरी बनाते हुए शारदा व ललित के जीतने की उम्मीद में हैं। देखना अब ये है कि हुडडा परिवार की मेहनत कितनी रंग लाती है और वो कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए और क्या तौर तरीके अपनाते हैं।

 

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